pH क्या है? जानिए पूरा नाम और दैनिक जीवन में pH का महत्व

pH क्या हैं एवं इसका पूरा नाम

pH का पूरा नाम: pH का पूरा नाम Potential of Hydrogen होता हैं। pH में p का मतलब Potenz होता हैं। पुसांज (Potenz) एक जर्मन शब्द हैं जिसका शाब्दिक अर्थ होता हैं - Power यानि शक्ति।

कोई भी पदार्थ या विलयन अम्लीय, क्षारीय या उदासीन हो सकता हैं। किसी विलयन की अम्लता या क्षारकता का पता लगाने के लिए pH Scale का उपयोग किया जाता हैं।

किसी भी विलयन का पीएच (pH) 0 से 14 के बीच एक संख्या होता है जो उस विलयन की अम्लता या क्षारकता के बारे में बताता है।

किसी अम्लीय पदार्थ का पीएच मान 7 से कम होता हैं। उदासीन विलयन का pH मान 7 होता हैं। किसी क्षारीय विलयन या पदार्थ का pH मान 7 से अधिक होता हैं।

pH स्केल का आविष्कार डेनमार्क के बायोकेमिस्ट एस.पी.एल. सोरेनसन (S.P.L Sorenson) ने 1909 में किया था।

कोई भी विलयन अम्लीय है या क्षारीय यह विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) की सांद्रता पर निर्भर करता हैं। अम्लीय विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) की सांद्रता अधिक होती हैं। क्षारीय विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) की सांद्रता कम और हाइड्रॉक्साइड आयन (OH-) की सांद्रता अधिक होती हैं।

pH स्केल किसी विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) की सांद्रता मापने का पैमाना हैं।

pH की परिभाषा: किसी विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) की सांद्रता का नकारात्मक लघुगणक (negative logarithm) को pH कहते हैं।

pH = –log10 [H+]

जिस विलयन में हाइड्रोजन आयन की सांद्रता ज्यादा होगी उसका पीएच मान कम होगा और वह अम्लीय विलयन होगा। जिस विलयन में हाइड्रोजन आयन की सांद्रता कम होगी उसका पीएच मान अधिक होगा और वह विलयन क्षारीय होगा।

दैनिक जीवन में pH का महत्व

दैनिक जीवन में pH का महत्व

हमारे दैनिक जीवन में pH का काफी महत्व हैं। हमारे पाचन तंत्र, दाँत और अन्य शारीरिक क्रियाओं में pH एक अहम योगदान हैं। मिट्टी की उर्वरता, वर्षा जल की गुणवत्ता आदि को सुनिश्चित करने में pH एक अहम भूमिका निभाता हैं। प्रकृति व दैनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पीएच का महत्व निम्नलिखित हैं -

हमारे पाचन तंत्र में pH का महत्व

पेट (उदर) हमारे पाचन तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग हैं। हमारा पेट हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (Hydrochloric acid) उत्पन्न करता है। यह उदर को हानि पहुँचाए बिना भोजन के पाचन में सहायक होता है। इसका एक निश्चित pH परास होता हैं।

अपच की स्थिति में उदर अत्यधिक मात्रा में अम्ल उत्पन्न करता है जिसके कारण उदर में दर्द एवं जलन का अनुभव होता है। इस दर्द से मुक्त होने के लिए ऐन्टैसिड (antacid) जैसे क्षारकों का उपयोग किया जाता है। यह ऐन्टेसिड अम्ल की आधिक्य मात्रा को उदासीन करता है। इसके लिए क्षारीय प्रकृति वाले मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड (मिल्क ऑफ मैगनीशिया) का उपयोग किया जाता हे।

पौधे एवं पशुओं की pH के प्रति संवेदनशीलता

हमारे शरीर में होने वाली जैव-रासायनिक क्रियाओं का pH परास 7 से 7.8 तक होता है। इसमें थोड़ा भी परिवर्तन हमारे शरीर पर बहुत घातक प्रभाव डालता है।

सभी जीवों का शरीर एक निश्चित पीएच परास (Range) में कार्य करता हैं। शरीर इसमें होने वाले परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं।

कृषि में

अच्छी उपज के लिए पौधों को एक विशिष्ट pH परास की आवश्यकता होती हैं। उपजाऊ मिट्टी का पीएच मान एक निश्चित परास में होता है जो न तो अधिक अम्लीय तथा न ही अधिक क्षारीय होता है। मिट्टी के pH मान के इस्तेमाल से उर्वरकों और बोए जाने वाले फसलों के प्रकार के निर्धारण में मदद मिलती हैं।

वर्षा जल का pH

वर्षा जल का pH मान लगभग 7 होता हैं। यह उदासीन होता है। उदासीन जल को शुद्ध माना जाता हैं।

जब वायुमंडल सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड से प्रदूषित होते हैं तो वर्षा के दौरान ये वर्षा के जल में घुल जाते हैं और जल को अम्लीय बना देते हैं। वर्षा के जल की pH मान जब 5.6 से कम हो जाती हे तो वह अम्लीय वर्षा कहलाती है। अम्लीय वर्षा का जल जब नदी में प्रवाहित होता है तो नदी के जल के pH का मान कम हो जाता है। ऐसी नदी में जलीय जीवों का अस्तित्व खतरे में आ जाता हैं।

जैविक प्रक्रियाओं में

विभिन्न जैविक प्रक्रियाएँ जैसे किण्वन आदि में भी pH मान का महत्व हैं। पीएच का पता लगा कर हम किण्वन (fermentation), एंजाइम हाइड्रोलिसिस, कीटाणुनाशन आदि जैसी जैविक प्रक्रियाओँ के माध्यम (medium) को समायोजित कर सकते हैं।

संक्षारण अनुसंधान में

संक्षारण अनुसन्धान में भी pH का महत्त्व हैं। समुद्र के पानी का pH माप कर जहाजों और पनडुब्बियों के कलपुर्जों पर क्षारीय समुद्री-जल के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।

दंत क्षय को रोकने में pH का महत्व

मुँह के pH का मान 5.5 से कम होने पर दाँतों का क्षय प्रारंभ हो जाता है। दाँतों का इनेमल शरीर का सबसे कठोर पदार्थ है। यह जल में नहीं घुलता लेकिन मुँह की pH का मान 5.5 से कम होने पर यह संक्षारित हो जाता है। मुँह में उपस्थित बैक्टीरिया, भोजन के पश्चात मुँह में अवशिष्ट शर्करा एवं खाद्य पदार्थों का निम्नीकरण करके अम्ल उत्पन्न करते हैं।

भोजन के बाद मुँह साफ़ करने से इससे बचाव किया जा सकता हे। मुँह की सफ़ाई के लिए क्षारकीय दंत-मंजन का उपयोग करने से अम्ल की आधिक्य मात्रा को उदासीन किया जा सकता है और दंत क्षय को रोका जा सकता हे।

पौधों एवं पशुओं द्वारा उत्पन्न रसायनों से आत्मरक्षा

पौधे, जानवर, कीड़े विभिन्न प्रकार के रसायनों को उत्पन्न करते हैं। जब हमें मधुमक्खी काटता हैं तो हमें दर्द एवं जलन का अनुभव होता है। मधुमक्खी के डंक में मेथेनॉइक अम्ल होता है जो अम्लीय प्रकृति का होता है। इससे होने वाले दर्द को दूर करने के लिए क्षारीय प्रकृति के बेकिंग सोडा का प्रयोग किया जाता है।

LEAVE YOUR VALUABLE COMMENT

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post